Wednesday, June 3, 2009

कवि नीरज - unplugged

This poem should be made mandatory reading for all Indians. Moving, haunting, so beautiful that it chokes you up. Featured in the movie "Nayi Umar ki Nayi fasal", sung by the great Rafisaab. Enjoy... Caravan guzar gaya..

स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से,
लुट गए सिंगार सभी बाग़ के बबूल से,
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे,
कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे।

नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गयी,
पाँव जब तलक उठें कि ज़िन्दगी फिसल गयी,
पात-पात झर गए कि शाख-शाख जल गयी,
चाह तो सकी निकल न पर उमर निकल गयी,
गीत अश्क़ बन गए, छंद हो दफ़न गए साथ के सभी दिए,
धुआँ-धुआँ पहन गए और हम झुके झुके, मोड़ पर रुके रुके,
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे,
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।

क्या शबाब था कि फूल-फूल प्यार कर ,
उठा क्या सरूप था कि देख आइना सिहर ,
उठा इस तरफ़ ज़मीन और आसमां उधर ,
उठा थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा,
एक दिन मगर यहाँ, ऐसी कुछ हवा चली लुट गयी कली कली,
कि घुट गयी गली-गली और हम लुटे-लुटे,
वक़्त से पिटे-पिटे साँस की शराब का खुमार देखते
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे.

हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की संवार दूं
होंठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूं
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूं
और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमि पर उतार दूं
हो सका न कुछ मगर, शाम बन गयी सहर
वह उठी लहर कि ढह गए किले बिखर
और हम डरे-डरे, नीर नयन में भरे
ओढ़कर कफ़न पड़े मज़ार देखते रहे
कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे।

माँग भर चली कि एक जब नयी-नयी किरण
ढोलकें ढुमुक उठीं ठुमुक उठे चरण-चरण
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन
गाँव सब उमड़ पडा बहक उठे नयन-नयन पर तभी ज़हर भारी,
गाज एक वह गिरी पुंछ गया सिन्दूर तार-तार हुई चूनरी
और हम अजान से, दूर के मकान से पालकी लिए हुए कहार देखते रहे
कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे

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